WoW Wednesday सीरीज में हम आज आपको उस शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे भारतीय सिनेमा की पहली फीमेल म्यूजिक कंपोजर माना जाता है। यह हैं जद्दनबाई हुसैन, जो 30 और 40 के दशक में खूब चर्चित रहीं। जद्दनबाई हुसैन, संजय दत्त की नानी और नरगिस दत्त की मां थीं। इस नाते वह सुनील दत्त की सास भी रहीं। जद्दनबाई हुसैन ने अपनी जिंदगी में बहुत दुख-दर्द झेला, लेकिन उन्होंने पुरुषों के दबदबे वाली दुनिया में न सिर्फ एंट्री की, बल्कि ऐसा कारनामा किया कि इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।

सिनेमा की दुनिया में डायरेक्शन से लेकर कैमरा और म्यूजिक के क्षेत्र में हमेशा से ही मर्दों का दबदबा रहा। 100 साल पहले जब सिनेमा की शुरुआत हुई तो उस समय तो महिलाओं को हीरोइन तक के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता था। लेकिन जिस तरह दुर्गाबाई कामत ने भारतीय सिनेमा की पहली महिला हीरोइन बनकर उस बंदिश को तोड़ा, उसी तरह जद्दनबाई हुसैन ने भी हिंदी सिनेमा की पहली महिला म्यूजिक कंपोजर बनकर इतिहास रचा। वह और सरस्वती देवी म्यूजिक की दुनिया में साथ-साथ ही आईं।

जद्दनबाई, फोटो: cinestaan

कोठे पर जन्म, मां दिलीपा बाई रहीं तवायफ

Jaddanbai Hussain का जन्म इलाहाबाद के एक कोठे की मशहूर तवायफ दिलीपा बाई के घर हुआ था। चूंकि जद्दनबाई की परवरिश और लालन-पालन कोठे पर ही हुआ, इसलिए बचपन से उनमें ठुमरी से लेकर गानों तक के प्रति रुझान देखने को मिला। बचपन से ही गानों का रियाज किया। भगवान ने ऐसी आवाज दी थी कि जो भी सुनता जद्दनबाई की ओर खिंचा चला आता। बताया जाता है कि जद्दनबाई की आवाज सुनकर दो ब्राह्मण युवा उनसे शादी को तैयार हो गए थे और इस्लाम तक कबूल कर लिया था। कोठे पर ही जद्दनबाई की चर्चे दूर-दूर तक होने लगे थे। भले ही जद्दनबाई की परवरिश कोठे पर हुई, पर तब वहां सिर्फ ठुमरी और नाच-गाना होता था। जद्दनबाई भी उसमें लीन हो गई थीं। उन्हें गाना और नाचना मां दिलीपा बाई से विरासत में मिला था। मां की इसी विरासत को जद्दनबाई आगे बढ़ाने लगीं।

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महबूब खान और दिलीप कुमार के साथ नरगिस और उनकी मां जद्दनबाई, फोटो: [email protected]

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गाने बुलाते थे राज्यों के शासक, खूब गाईं ठुमरी

बाद में जद्दनबाई ने सिंगर बनने का फैसला किया और वह कोठे की दुनिया से निकलकर पहले कोलकाता और फिर मुंबई आ गईं। यहां उन्होंने गाने के अलावा फिल्मों में एक्टिंग भी की और डायरेक्शन भी किया। जद्दनबाई ने मुंबई आने के बाद पहले श्रीमंत गणपत राव और फिर उस्ताद मोइनुद्दीन खान, उस्तार छद्दू खान साहेब और उस्ताद लाब खान साहेब से ट्रेनिंग ली। धीरे-धीरे जद्दनबाई अपनी मां से भी ज्यादा मशहूर हो गईं। अब तो उन्हें बीकानेर से लेकर कश्मीर, इंदौर, रामपुर और जोधपुर जैसे शहरों के शासक भी अपने राज्यों में गाने के लिए बुलाने लगे। उन्होंने कई रेडियो स्टेशनों में गजलें गाईं, जिनका जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता था। वो जद्दनबाई की आवाज के दीवाने हो जाते। जद्दनबाई ने कोलंबिया ग्रामोफोन कंपनी के साथ भी गजलें रिकॉर्ड कीं।

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बेटी नरगिस के साथ जद्दनबाई, फोटो: [email protected]

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प्रोडक्शन कंपनी खोली, नरगिस को किया लॉन्च

साल 1933 में जद्दनबाई ने फिल्म ‘राजा गोपीचंद’ से एक्टिंग डेब्यू किया। इसके बाद उन्होंने एक पाकिस्तानी फिल्म में भी काम किया। कुछेक फिल्मों में एक्टिंग करने के बाद जद्दनबाई ने 1935 में अपना प्रोडक्शन हाउस खोला जिसका नाम ‘संगीत फिल्म्स’ रखा। इसके बैनर तले जद्दनबाई ने पहली फिल्म ‘तलाश-ए-हक’ प्रोड्यूस की। जद्दनबाई ने इस फिल्म में न सिर्फ एक्टिंग की, बल्कि इसका म्यूजिक भी दिया। इस तरह जद्दनबाई भारतीय सिनेमा की पहली महिला संगीतकार बन गईं।
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इसलिए बंद हो गई प्रोडक्शन कंपनी

जद्दनबाई ने ‘तलाश-ए-हक’ से ही बेटी नरगिस को बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट लॉन्च किया। लेकिन 1940 तक आते-आते कई बड़े प्रोडक्शन हाउस की एंट्री हो चुकी थी। इस कारण बड़े स्तर पर फिल्मों का प्रोडक्शन शुरू हो गया। नौबत ऐसी आ गई कि जद्दनबाई की प्रोडक्शन कंपनी बंद हो गई और उन्होंने फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली। 8 अप्रैल 1949 को जद्दनबाई का निधन हो गया।



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